तापमान में आकस्मिक वृद्धि से फसलों में नुकसान से बचाव के उपाय करें किसान

श्रीगंगानगर (सच कहूँ न्यूज)। जिले में इन दिनों तापमान में बढ़ोतरी देखी जा रही है। इस समय गेहूं के अच्छे उत्पादन लिए दिन का अनुकूल तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस रहना चाहिए, परन्तु इस समय दिन का तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस व रात का तापमान 10 से 15 डिग्री सेल्सियस के लगभग पहुंच गया है। अगर यही स्थिति बनी रहती है तो फसलों में नुकसान होने की आशंका है। कृषि विभाग द्वारा बढ़ते तापमान के मद्देनजर फसलों को बचाव के उपाय हेतु दिशा निर्देश जारी किए गए हैं।

कृषि विभाग के उप निदेशक डॉ. जीआर मटोरिया ने बताया कि गेहूं की फसल में बीज भराव व बीज निर्माण की अवस्था पर आकस्मिक तापमान वृद्धि नुकसान देय है। अगर यह स्थिति आगामी कुछ दिनों तक बनी रहती है तो इसके बचाव हेतु सिंचाई पानी की उपलब्धता होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। गेहूं की फसल में आकस्मिक तापमान वृद्धि से होने वाले प्रभाव से बचने के लिए बीज भराव व बीज निर्माण की अवस्था पर सीलिसिक अम्ल (15 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) के विलियन अथवा सीलिसिक अम्ल (10 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी $ 25 ग्राम 100 लीटर पानी) का परणीय छिड़काव (फॉलियर स्प्रे) करें। सीलिसिक अम्ल का प्रथम छिड़काव झंडा पत्ती अवस्था व दूसरा छिड़काव दूधिया अवस्था पर करने से काफी लाभ होगा।

उन्होंने बताया कि सीलिसिक अम्ल गेंहू को प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ने की शक्ति प्रदान करता है व निर्धारित समय पूर्व पकने नहीं देता जिससे की उत्पादन में गिरावट नहीं होती। गेहूं की बाली आते समय एस्कार्बिक अम्ल के 10 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी घोल का छिड़काव करने पर फसल पकते समय सामान्य से अधिक तापमान होने पर भी उपज में नुकसान नहीं होता है। गेहूं की फसल में बूटलीफ एवं एंथेसिस अवस्था पर पोटेशियम नाइट्रेट (13.0.45) के 2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। गेहूं की पछेती बोई फसल में पोटेशियम नाइट्रेट 13.0.45, चिलेटेड जिंक, चिलेटेड मैंगनीज का स्प्रे भी लाभप्रद है।

उन्होंने बताया कि चने में फसल को पकाव के समय सूखे के प्रभाव से बचाने के लिए पोटेशियम नाइट्रेट (13.0.45) 1 किलोग्राम का 100 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल की फूल वाली अवस्था और फली वाली अवस्था पर परणीय छिड़काव करें। कृषि अनुसंधान अधिकारी जगजीत सिंह के अनुसार सीलिसिक अम्ल का छिड़काव करने से तापक्रम में होने वाली वृद्धि से नुकसान की आशंका कम हो जाएगी व उत्पादन में वृद्धि होगी।

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